सोमवार

बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का उद्भव और विकास - भाग- 3

 ...हटा कर कृश्नचन्दर को महासचिव बनाया गया तो यह आंदोलन सांगठनिक स्तर पर बिखर गया। लेकिन न तो जनता का संघर्ष रुका और न ही प्रगतिशील कवियों का स्वर मंद पड़ा। गाँवों, कसबों और शहरों में अलग-अलग समूह बनाकर जनपक्षधर लेखकों ने अपना संघर्ष जारी  रखा। राजनीति से जुड़े लोग भी प्रलेस के सदस्य बनकर इसकी सक्रियता बढ़ा रहे थे। बिहार की कम्युनिस्ट पार्टी के बड़े नेता अली अशरफ जैसे लोग माक्र्स, लेनिन और स्टालिन की राजनीतिक दार्शनिक किताबों का उर्दू अनुवाद कर रहे थे। इस बीच बिहार में कई प्रांतीय सम्मेलन भी हुए । पटना, आरा, नवादा, बक्सर, बेगूसराय, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, भागलपुर, सुल्तानगंज, गया आदि शहर ही नहीं, छोट-छोटे कसबों में भी लेखक और रंगकर्मी सक्रिय रहे। यही कारण है कि 1975 में जब प्रगतिशील लेखक संघ के पुनर्गठन की पहल हुई, तो राष्ट्रीय स्तर का पहला सम्मेलन बिहार के ऐतिहासिक शहर गया में ही आयोजन किया गया।
    प्रगतिशील लेखक संघ का गया सम्मेलन भारत के स्वातंन्न्योत्तर सांस्कृतिक इतिहास में एक अविस्मरणीय अधिवेशन था। विभिन्न भारतीय भाषाओं के प्रगतिशील लेखक आंदोलन के द्रुत विकास को ध्यान में रखते हुए प्रलेस के इस सम्मेलन में संगठन को एक नया नाम ‘प्रगतिशील लेखकों का राष्ट्रीय संघ’ दिया गया। बंगला, मराठी, तेलगु, असमिया, पंजाबी, उर्दू और हिन्दी समेत विभिन्न भारतीय भाषाओं मे एक सौ से अधिक लेखक इस सम्मेलन में उपस्थित हुए। सम्मेलन में एक घोषणा-पत्र भी प्रस्तुत किया गया, जिसमें लेखकों की भूमिका के संदर्भ में भारत की जनता की आशाओं-आकांक्षाओं को प्रवर्तित किया गया था। इस सम्मेलन में समकालीन चुनौतियों के संदर्भ में लेखक संगठनो की भूमिका पर भी विचार किया गया। इसमें बड़े पैमाने पर  युवा लेखकों की उपस्थिति से नयी ऊर्जा तथा उत्साह का संचार हुआ। इस सम्मेलन में सर्वसम्मति से भीष्म साहनी को महासचिव चुना गया। इस अधिवेशन का विशेष महत्व इस बात को लेकर था कि इसमें प्रायः सभी राज्यों तथा भाषाओं का प्रतिनिधित्व था।
    उसके बाद से बिहार में प्रांतीय इकाई एवं विभिन्न जिलों में स्थानीय इकाइयों का गठन शुरू हुआ। यद्यपि गया में 6 से 9 मई, 75 मे सातवें राष्ट्रीय सम्मेलन से पूर्व राज्य में 5 प्रांतीय सम्मेलन का आयोजन पटना, सुल्तानगंज आदि स्थानों पर हो चुका था पर गया सम्मेलन के बाद बिहार में प्रलेस की गतिविधियों का विस्तार कई दिशाओं में हुआ। 1976 में मसौढ़ा (सारण) में छठा  राज्य सम्मेलन के बाद 1983 में 11- 12 दिसम्बर को बेगूसराय में प्रलेस ने सातवां राज्य सम्मेलन की शानदार मेजबानी की। श्री राजेन्द्र राजन, डा. पी. गुप्ता, डा. अखिलेश्वर कुमार, डा. आनन्द स्वरूप शर्मा, श्री बोढ़न प्रसाद सिंह एवं प्रगतिशील साहित्यकारों की साझेदारी ने इस सम्मेलन को सफलता के शिखर पर पहुँचा दियां इसी क्रम में अप्रैल 1984 में विश्वशांति के संदर्भ में प्रलेस ने बिहार राज्य परिषद् के साथ मिलकर लेखकों का एक राज्य स्तरीय सेमिनार किया, जिसके मुख्य अतिथि राष्ट्रीय महासचिव श्री भीष्म साहनी थे। इस सेमिनार में बाबा नागार्जुन, पटना
विश्वविधालय के कुलपति डा. गणेश प्रसाद सिन्हा, प्रो. देवेन्द्रनाथ शर्मा सहित राज्य के अन्य जिलों से आये अनेक लेखकों, कलाकारों, शिक्षकों, छात्रों की महत्वपूर्ण भागीदारी रही।1984  में ही बिहार प्रगतिशील लेखक संघ की ओर से 11,12,13 अक्टूबर को पटना में आचार्य शुक्ल जन्मशती सेमिनार का आयोजन किया गया था, जिसके उद्घाटनकत्र्ता डा. नामवर सिंह थे। तीन दिनों के इस सेमिनार में वरिष्ठ कवि शिवमंगल सिंह सुमन, डा. बच्चन सिंह, डा. मैनेजर पाण्डेय,.... क्रमश:..

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