गुरुवार

हिन्दी साहित्य का आधुनिक इतिहास प्रलेस का इतिहास है – डा. खगेन्द्र ठाकुर

बायें से - बिहार प्रलेस के महासचिव राजेन्द्र राजन, कथाकार डा. संतोष दीक्षित, बिहार प्रलेस के अध्यक्ष डा. ब्रजकुमार पाण्डेय, वरिष्ठ आलोचक डा. खगेन्द्र ठाकुर, डा. रवीन्द्रनाथ राय एवं वरिष्ठ कवि अरुण कमल

कम्युनिस्टों ने गलती की लेखकों ने नहीं, पार्टी ने जातिवादियों से सांठगांठ की लेखकों ने नहीं – अरुण कमल

बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के प्रांतीय सम्मेलन , जो कि 11-12 फरवरी, 2012 को पूर्णिया में संयोजित होने जा रहा है, के कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा निर्मित करने हेतु राज्य कार्यसमिति की एक विशिष्ठ बैठक डा. ब्रजकुमार पाण्डेय  की अध्यक्षता में जनशक्ति भवन, अमरनाथ रोड, पटना के सभागार में 11 दिस. को  आयोजित की गई। संचालक बिहार प्रलेस के महासचिव राजेन्द्र राजन ने किया।
बैठक का आरंभ महत्वपूर्ण दिवंगत साहित्यकारों, कलाकारों संस्कृतिकर्मियों के शोक प्रस्ताव से किया गया। इस अवसर पर प्रगतिशील लेखक संघ की 75वीं वर्षगांठ जो लखनऊ में मनाई गयी थी, इसकी विस्तृत विवेचना वरिष्ठ आलोचक डा. खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि लखनऊ में प्रलेस की जो 75वीं वर्षगांठ मनाई गयी , उस मौके पर डा. नामवर सिंह का भाषण प्रलेस के भविष्य के दृष्टिकोण से सही नहीं था। मुझे थोड़ा अजीब लगा जो नामवर जी ने कहा कि प्रलेस की सौवीं सालगिरह पर चर्चा होनी चाहिए। नामवर जी ने वहाँ पर आरक्षण के विरोध में भी कहा। उनके कहे पर थोड़ा विवाद भी हुआ। जबकि इस अवसर पर मेरा विचार था कि आज जब हमारे शत्रु हम पर टूट पड़े हैं, तो ऐसे वक्त में ऐसे विचारों की जरूरत नहीं हैं। सौवी सालगिरह तक हम रहें न रहें लेकिन इतना विश्वास है कि प्रलेस की सौवीं सालगिरह भी मनाई जायेगी। मेरा विचार था कि बड़ी जाति बच्चे अगर भीख मांगेंगे तो आरक्षण के कारण नहीं बल्कि पूँजीवाद के कारण। अभी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि हम प्रलेस विरोधी तथा वाम विरोधी ताकतों से सचेत रहें। डा. खगेन्द्र ठाकुर ने आगे कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ का इतिहास जब भी लिखा जायेगा तो हमारा लेखन हिन्दी या उर्दू का या किसी अन्य भाषा का, इसी के आधार पर लिखा जायेगा। हिन्दी साहित्य का आधुनिक इतिहास प्रलेस का इतिहास है।
बिहार प्रलेस के महासचिव ने कहा कि वर्तमान की चुनौतियों से हम जूझते रहे हैं और जूझते रहेंगे। उन्होंने कहा कि सत्ता के बहकावे से हम कैसे खुद को बचाये हमें यह भी सोचना है।
साहित्यकार कर्मेदु शिशिर ने चिंता जाहिर की कि बिहार सरकार ने साहित्यकारों को सम्मानित करने का जो तरीका अपनाया है वह गलत है, इसका विरोध किया जाना चाहिए।
कथाकार डा. संतोष दीक्षित ने कहा कि प्रलेस का जो मूल्यांकन होगा, वह प्रगतिशील साहित्य के आधार पर ही होगा।
बहुचर्चित कवि अरुण कमल ने कहा कि प्रगतिशील लेखक संध बना ही क्यों, इस संघ का गठन 1936 में क्यों हुआ ? वह कारण आज भी जीवित है या नहीं, इस पर भी हमें सोचना चाहिए। इसलिए यह संगठन बना था कि जब पूरी दुनिया गुलाम थी, प्रगतिशील लेखक संघ ने उस गुलामी के खिलाफ आवाज उठाई हमारा बुनियादी लक्ष्य आज भी वही है। कम्युनिस्टों ने गलती की लेखकों ने नहीं, पार्टी ने जातिवादियों से सांठगांठ की लेखकों ने नहीं, जब कभी बुनियादी बातों पर हमले हुए, हमने आंदोलन किये …. प्रलेस किसी पार्टी का नहीं है। हम नस्लवाद, नग्नवाद, पूँजीवाद के विरोध में हैं, रहेंगे।
इस अवसर पर प्रो. रवीन्द्रनाथ राय, अरुण शीतांश (आरा), डा. पूनम सिंह, रमेश ऋतंभर (मुजफ्फरपुर) नूतन आनन्द, देव आनन्द (पूर्णिया), युवा कवि शहंशाह आलम, राजकिशोर राजन, प्रमोद कुमार सिंह, सुमन्त (पटना) व मधेपुरा से अरविन्द श्रीवास्तव ने अपने-अपने सार्थक विचार प्रकट किए।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में प्रांतीय सम्मेलन से संबंधित कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गये।
धन्यवाद ज्ञापन राजेन्द्र राजन ने किया।