मंगलवार

नीतीश जी इतिहास से सबक लें: प्रगतिशील लेखक संघ

प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंडल के सदस्य डा. खगेन्द्र ठाकुर, बिहार प्रलेस के अध्यक्ष डा. ब्रज कुमार पाण्डेय एवं महासचिव श्री राजेन्द्र राजन  ने संयुक्त वक्तव्य में कहा कि - राज्य गीत और राज्य प्रार्थना की स्वीकृति देकर नीतीश कुमार ने गणतंत्र की प्राचीन धरती बिहार में जनतंत्र की जगह राजतंत्र कायम करने की ओर कदम बढ़ाया है। इसके रचनाकारों को राजकोष से पुरस्कृत करने की घोषणा से स्वेच्छाचारी ‘राजा’ सदृश्य आचरण प्रदर्शित हुआ है इतिहास गवाह है कि राष्ट्रगाण, राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रीय झंडा का विकल्प आजादी के बाद केवल पृथकतावादियों ने दिया है। राष्ट्रीय एकता व धर्मनिरपेक्षता के प्रश्न पर बिहार सदैव अग्रणी रहा है, - दुख है कि लोकवादी व समाजवादी माने जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश जी द्वारा अलोकतांत्रिक निर्णय लिए गये हैं। यह राष्ट्रीय मुख्यधारा से बिहार को विलग करना माना जा सकता है।
विविधतापूर्ण एवं सर्वधर्म समन्वयवादी बिहार का व्यापक उदात्त चरित्र इस कार्य से खंडित होगा। साहित्यकारों को राजदरबारी बनाने को वे लगातार कोशिश कर रहे हैं। सम्मान समारोह किये बगैर कई रचनाकारों को इनके द्वारा राजकीय पुरस्कार के नाम पर मोटी रकम के चेक पहूँचाये गये हैं। लेखकों के स्वाभिमान को सरकारी पैसे के बल पर कमजोर बनाना निंदनीय है।
    बिजली उद्योग और कृषि के क्षेत्र में रंक बने बिहार से रोजगार के लिए पलायन महामारी सदृश्य है। प्रार्थना से नया बिहार नहीं बनेगा यहाँ ‘मालिक’ कौन है और याचक कौन है ? जनता सर्वोपरि है। कभी सम्राट नीरो ने पुराने रोम को जलाकर नया रोम बसाया था वहाँ जनहित की अनेक योजनाएँ भी बनायी थी। उसने साहित्य एवं संस्कृतिकर्मियों को पुरस्कृत करके राजदरबार सजाया था नये अमीरों की तादाद भी बढ़ गयी थी लेकिन जनता से तिरष्कृत होकर उसने आत्महत्या कर ली थी। हम उम्मीद करते हैं कि नीतीश जी इतिहास से सबक लेंगे।    

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