शुक्रवार

बिहार प्रगतिशील लेखक संघ का उद्भव और विकास - भाग- 1

 -पूनम सिंह 
बीसवीं शताब्दी के पहले चरण के समाप्त होते ही प्रथम विश्वयुद्ध की त्रासदी ने यदि एक तरफ पूरी दुनिया के संवेदनशील रचनाकारों और बुद्धिजीवियों को गहरे रूप से उद्वेलित किया तो दूसरी तरफ उस समय सोवियत संध की समाजवादी क्रांति ने माक्र्सवादी विचारधारा से प्रभावित होकर संसार के साहित्य में एक नई ऊर्जा का संचार किया जिसके कारण समाजवादी यथार्थवाद के रूप में यथार्थवादी लेखन की एक नई धारा  सामने आई और भारत सहित पूरी दुनिया में एक नये साहित्यक आंदोलन का सूत्रपात हुआ जिसे ‘प्रगतिशील आंदोलन’ के रूप में जाना गया। साहित्य के प्रति एक जीवन्त गत्यात्मक दृष्टि लेकर उस समय विश्व के अनेक साहित्यकारों ने इस प्रगतिशील सोच का स्वागत किया।
    सृजन के क्षेत्र में मैक्सिम गोर्की, मायकोवस्की, बर्नाडशा, टालस्टाय, बर्तोल्त ब्रेख्त, पावलो नेरुदा, नाजिम हिकमत, हेंमिग्वे, गार्सियालोकी से लेकर अपने देश में प्रेमचन्द, रवीन्द्रनाथ, नजरुल इस्लाम, जोश, फैज, कृश्नचन्दर, यशपाल जैसे कई महान साहित्यकारों ने इसकी अगुवाई की तथा इसके वैज्ञानिक मानवतावादी-क्रांतिकारी आग्रहों के अनुकूल साहित्य सृजन का प्रयास किया। विचार और चिन्तन के क्षेत्र में एक तरफ मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्टालिन, माओ जैसे राजनीतिक अपनी भूमिका निभायी तो दूसरी तरफ प्लेखानोव, रेल्फ,  फाक्स, काडवेल, लूकाच, वेंजामिन जैसे गंभीर साहित्यकारों दे इसके स्वरूप निर्माण ने अपनी सक्रिय भागीदारी दी।
    हिन्दी में प्रगतिशील आंदोलन की सहित्यिक पृष्ठभूमि का निर्माण इसी बलते परिवेश और परिप्रेक्ष्य मे हुआ। हिन्दी कविता की प्रगतिशील धारा समस्त भारतीय साहित्य में आए मूलगत बदलाव की ही एक विशेष अभिव्यक्ति है, जिसे भारतीय जनता के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुक्ति के आंदोलनों की पृष्ठभूमि में समझा जा सकता है।
    सन् 1911/12 में बंगाल से अलग होने के बाद बिहार में आधुनिक लेखन तथा नवजागरण की शुरूआत हो चुकी थी। उसके पहले भी, खड़ी बोली में गद्य का तो आंदोलन इसी सूबे के मुजफ्फरपुर शहर से शुरू हुआ था। उन्हीं दिनों महेश नारायण जैसे अपने समय के सबसे प्रयोगशील और आधुनिक कवि सामने आये। देवकीनंदन खत्री की जन्मभूमि और कर्मभूमि भी बिहार ही था। पिछली सदी के तीसरे दशक में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के नेतृत्व में पुस्तकालय आंदोलन का प्रचार हुआ। गाँव-गाँव में पुस्तकालय खुले और गाँव-कसबों के स्तर पर रंगमंडलियों का गठन हुआ। हिन्दी समाज में आधुनिक सांस्कृतिक चेतना के प्रचार में बिहार पीछे नहीं था। रामवृक्ष बेनीपुरी और शिवपूजन सहाय जैसे महान गद्यकार और विचारक सामने आये, जिसे परम्परा में आगे चलकर दिनकर, नलिन विलोचन शर्मा, रेणु, नागार्जुन, राजकमल चौधरी आदि का नाम आता है। 1920 के ही दशक में पटना जिले के बाढ़ शहर में एक नाटक मंडली सक्रिय थी जिसके अगुआ-रामेश्वर प्रसाद रामने कई नाटक लिखे थे और उनका मंचन भी किया था। हालांकि उनके नाटक अब उपलब्ध नहीं हैं लेकिन रामचन्द्र शुक्ल रचित हिंन्दी साहित्य के इतिहास के प्रथम संस्करण और मिश्रबंधु विनोद में उनकी चर्चा है। क्रमशः...  
                                                                                

4 टिप्‍पणियां:

रवीन्द्र प्रभात ने कहा…

यह जानकार वेहद प्रसन्नता हुई कि बिहार प्रलेस ने अपना नया ब्लॉग बना लिया है, आप सभी अभिव्यक्ति की इस नई क्रान्ति के माध्यम से प्रगतिशील चिंतन धारा को चाहूं ओर आयामित करें, अनंत आत्मिक शुभकामनाओं के साथ-

शरद कोकास ने कहा…

नए लिखने पढ़ने वालों के लिये यह बेहद उपयोगी और ज़रूरी ब्लॉग है > इस ब्लॉग पर आयोजनों की रपट के अलावा , नौजवानों के पढ़ने योग्य सैद्धांतिक पुस्तको की सूची तथा उनके प्राप्ति स्थान की जानकारी भी प्रस्तुत करें शरद कोकास , प्रलेस दुर्ग भिलाई ( छत्तीसगढ़ )

शरद कोकास ने कहा…

कृपया word verification हटा लें , इसका कोई अर्थ नहीं है व्यर्थ में समय की बरबादी होती है ।

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

main bhi शरद कोकास jii se sahmat hu.