गुरुवार

प्रगतिशील लेखक संघ का 16 वां राष्ट्रीय अधिवेशन



 


*लेखक, पत्रकारों के लिए यह समय है चुनौती भरा- पी. साईनाथ
*यदि कोई दंगा 24 घंटे से ज्यादा चले तो राज्य की भागीदारी सुनिश्चित होती है- विभूति नारायण राय
*समाज में जागृति के लिए साहित्य ही एकमात्र मार्ग है- पुन्नीलन
*जिस बाजार की जरूरत साहित्य को है वह सीमित है| इंटरनेट व कम्प्यूटर से लेखकों का शोषण बढ़ा है- डा. खगेन्द्र ठाकुर
*अंग्रेजों से आजादी हमें जरुर मिली लेकिन शोषण, गरीबी व अंधविश्वास से नहीं- प्रो. अली जावेद
*सोशल मीडिया पर वैचारिक बातें होनी चाहिए- ललित सुरजन
*साम्प्रदायिकता और जातीयता के विरुद्ध लड़ना होगा- राजेन्द्र राजन

      बिलासपुर में संम्पन्न हुआ तीन दिवसीय प्रगतिशील लेखक संघ का राष्ट्रीय अधिवेशन| जिसमे 18 राज्यों से पधारे 300 से अधिक साहित्यकार, पत्रकार, लेखक-कवि आदि ने अपनी भागीदारी से सम्मेलन को यादगार बना दिया| 9 सितम्बर को उदघाटन सत्र की अध्यक्षता प्रलेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुन्नीलन, वरिष्ठ पत्रकार पी. साईनाथ एवं आलोचक डा. खगेन्द्र ठाकुर ने की| ‘साहित्य की भूमिका : स्वतंत्रता और असमानता के प्रश्न’ पर बोलते हुए पी. साईनाथ ने कहाकि लिखने की आजादी पर हमले हो रहे हैं और सभी क्षेत्रों में असमानता और असहिष्णुता बढाती जा रही है | उन्होंने कहाकि दुनिया के 62 आमिर लोगों के पास जितनी संपत्ति है उतनी आधी जनसंख्या के पास ! भारत में तो यह असमानता और भी ज्यादा है| देश की दो तिहाई आबादी के पास जितना धन-दौलत है उससे अधिक 15 पूंजीपतियों के पास! उन्होंने विस्तार से इस असमानता को रेखांकित किया| उन्होंने कावेरी जल विवाद सहित पानी की समस्या पर भी विस्तृत रूप से प्रकाश डाला| पी. साईनाथ ने कहाकि देश में पिछले 30 वर्षों में 27 पत्रकारों की ह्त्या हुई, ये वही पत्रकार थे जिन्होंने सत्ता व व्यवस्था के खिलाफ लिखने का साहस दिखाया था|
उद्घाटन सत्र में प्रलेस के राष्ट्रीय महासचिव अली जावेद ने प्रस्तावना पढ़ी एवं सहयोगी संगठन जनवादी लेखक संघ की ओर से भेजे महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह के वक्तव्य को पढ़ा| जन संस्कृति मंच की ओर से प्रणय कृष्ण एवं इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश ने भी अपने उदगार व विचार व्यक्त किए..

अली जावेद ने कहा कि जनतांत्रिक मूल्यों का आदर नहीं करते सत्ता में बैठे लोग| यह सोने का वक्त नहीं है देश में ज्यादती व उत्पीड़न सा माहौल है| हम संवेदनशून्य में जी रहे हैं|
द्वितीय सत्र में ‘ वित्तीय पूँजी की चुनौतियां: साहित्य और सत्ता के सवाल ‘ पर बीज वक्तव्य  पूर्व कुलपति विभूति नारायण राय ने दिया| प्रभाकर चौबे ने कहा कि पूंजीवाद क्रूर होता है, पूँजीवाद ने ढाका के कारीगरों का अंगूठा काट लिया था| प्रगतिशील वसुधा के सम्पादक राजेन्द्र शर्मा ने कहाकि वित्तीय पूँजी बेलगाम पूँजी है, वित्तीय पूँजी के सौदागर जितने दिन चाहेंगे उतने दिन दंगा होगा ‘राग भोपाली’ के शैलेन्द्र शैली ने कहा कि वित्तीय पूँजी का इस्तमाल जनवादी प्रगतिवादी विचारों को समाप्त करने के लिए किया जा रहा है| हर संकट मौक़ा लेकर आता है, वित्तीय पूँजी का संकट घनघोर चुनौती के रूप में सामने खडा है| इस सत्र में चंद्रशेखर रेड्डी, प्रो. एस. एन. मालाकार एवं पत्रकार सिद्धार्थ बरदराजन ने भी अपने-अपने विचारों को व्यक्त किये| अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डा. खगेन्द्र ठाकुर ने कहा कि वित्तीय पूँजी की सत्ता एक तानाशाह होती है.. संवेदना की आग जलती है तभी साहित्य निकलता है| साहित्य बाजार  के लिए नहीं लिखा जाता| इंटरनेट और कम्प्यूटर से लेखकों का शोषण बढ़ा है| मनुष्य के पुरुषार्थ का युग है यह|
      अधिवेशन के दूसरे दिन ‘हमारा समय : साहित्य, मीडिया और सत्ता का अन्तर्सम्बंध’ सत्र की अध्यक्षता ललित सुरजन एवं राजेन्द्र राजन ने की, संचालन ‘साम्य’ पत्रिका के सम्पादक विजय गुप्त ने की बतौर वक्ता सिद्धार्थ बरदराजन ने कहा कि आज साहित्यकार और पत्रकार दोनों पर खतरा बना हुआ है, देश की बीमारियों पर चर्चा पत्रकार करते हैं वहीं रूह पर साहित्यकार ! साहित्यकार श्याम कश्यप ने कहा कि सत्ता का चरित्र ज्ञान विरोधी होता है| संतोष भदौरिया ने कहा की सत्ता और मीडिया में बहुत थोड़े से लोग हैं जो हमारी आवाज़ से अपनी आवाज़ मिला रहे हैं| आज सारा कुछ ठेके पर दिया जा रहा है| बहुत पहले प्रेमचन्द ने साहित्य की भूमिका निर्धारित कर दी थी..| फरहत रिजवी ने कहा – आज उर्दू के अखबार मदरसों का अखबार बनकर रह गया है, तलाक प्रसंग को हिंदी मीडिया खूब उछाल रहे हैं..| इस सत्र में राजेन्द्र शर्मा, विनीत तिवारी, तेजिंदर, मिथिलेश ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए| सत्र के अध्यक्ष राजेन्द्र राजन ने कहाकि यह आत्मचिंतन का वक्त है पुरस्कार नहीं लौटाने वाले साहित्यकारों से ज्यादे उम्मीद नहीं की जा सकती| साम्प्रदायिकता और जातीयता सिक्के के दो पहलू हैं जिसके विरुद्ध लड़ना होगा| विवेक की रक्षा के लिए हमें लड़ना होगा.. | ललित सुरजन ने कहा कि हमें अपने शब्दों के संसार से बाहर निकलना होगा, साहित्य को जनता तक पहुंचाने होंगे| सोशल मीडिया पर वैचारिक बहसें होनी चाहिए.. |
अधिवेशन के चतुर्थ सत्र में ‘ दलित आदिवासी साहित्य: सामाजिक न्याय के प्रश्न’ पर विषय प्रवर्तन करते हुए पंजाब से साहित्यकार सुकदेव सिंह ने कहा कि दलित आन्दोलन जैसी चीज पंजाब में नहीं है, यहाँ दलितों की स्थिति अन्य राज्यों से भिन्न है, पंजाब में अस्पृश्यता नहीं है जिसमे पंजाब की अपनी परम्परा है हिन्दुस्तान आने वाले बहुत सारे सूफी पंजाब हो कर आये थे..| राजेन्द्र राजन ने कहा कि सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक उत्थान मिलकर सामाजिक न्याय बने हैं| इस सत्र के वक्ताओं में चौथीराम यादव, सुबोध नारायण मालाकार, हेमलता महेश्वर, रणेंद्र, जयनंदन, शशि कुमार, वी. नारायण थे| सत्र संचालन प्रेमचंद गांधी ने किया |
अधिवेशन का एक और महत्वपूर्ण सत्र ‘बाजार का दबाव: साहित्य और स्त्री विमर्श’ था| लेखिका हेमलता महेश्वर ने विषय प्रवर्तन किया, चौथीराम यादव ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि बाज़ार आपके घर आता है विज्ञापन की पालकी पर चढ़कर.. पुरुष की आँखों से देखना बंद कीजिए.. बिहार प्रलेस महासचिव रवीन्द्र नाथ राय ने कहा कि बाजार का दबाव हरेक क्षेत्र में है, स्त्री विमर्श भी अछूता नहीं है, इस दबाब से साहित्य हाशिये पर है| इस सत्र की अध्यक्षा करते हुए पूनम सिंह ने कहा कि – हम आधी आबादी हैं हम आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलना चाहते हैं| मुझे भी आपको सुनना चाहिए क्योंकि अबतक मैंने आपको सुना है| स्त्री अस्मिता का प्रश्न जो एक होलोकास्ट की तरह बढ़ रहा है उसकी चिंता होनी चाहिए| हम केवल देह नहीं हैं, एक नागरिक हैं.. | इस सत्र में आरती चिराग, सुसंस्कृति परिहार, सुनिताधर बासुठाकुर, पराग ज्योति महंत, संगीता महाजन, सारिका श्रीवास्तव आदि ने अपने विचार व्यक्त किए|  

अधिवेशन के समापन पर बिलासपुर के गांधी चौक से साहित्यकारों की विशाल रैली शहर भ्रमण करते हुए नेहरू चौक पर समाप्त हुई| रैली में पूँजीवाद, बाजारवाद, जातिवाद, सम्प्रदायवाद  के खिलाफ आवाज लगायी गयी साथ ही साहित्य, संस्कृति  और परंपरा के पक्ष में आम जन को जागरुक किया गया|
अधिवेशन के सांगठनिक सत्र में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के नवनिर्वाचित पदाधिकारियों की घोषणा की गयी | निर्णय अनुसार पुन्नीलन (तामिलनाडू) अध्यक्ष, आली जावेद कार्यकारी अध्यक्ष, अध्यक्ष मंडल में- विश्वनाथ त्रिपाठी, खगेन्द्र ठाकुर, चौथीराम यादव, सुखदेव सिंह, गितेश शर्मा, प्रभाकर चौबे, सतीश कालसेकर को शामिल किया गया| महासचिव राजेन्द्र राजन, सचिव अमिताभ चक्रवर्ती, संजय श्रीवास्तव, पी.लक्ष्मीनाथ, वी. मोहनदास, विनीत तिवारी, हेमलता महेश्वर, सलाम तोम्बा एवं कोषाध्यक्ष नथमल शर्मा चुने गए|
नव निर्वाचित राष्ट्रीय महासचिव राजेन्द्र राजन कथाकार एवं कुशल संगठनकर्ता हैं| बिहार राज्य के बेगूसराय जिलान्तर्गत मटिहानी विधान सभा में विधायक रह कर उन्होंने क्षेत्र को साहित्यिक एवं सांस्कृतिक पहचान दी है, गोदरगावां का चर्चित ‘ विप्लवी पुस्तकालय’ कलमकारों के आकर्षण का केंद्र रहा है| वे बिहार प्रलेस के पूर्व महासचिव, वर्त्तमान में कार्यकारी अध्यक्ष साथ ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे हैं| वर्त्तमान में वे साप्ताहिक ‘जनशक्ति’ के संपादक हैँ|

प्रलेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में कई पुस्तकों का लोकार्पण किया गया, पुस्तक प्रदर्शनी लगायी गयी| महत्वपूर्ण व यादगार लम्हा हबीब तनवीर एकेडमी व नाचा गम्मत के कलाकारों द्वारा छत्तीसगढ़ लोकनृत्य की शानदार प्रस्तुति, इप्टा रायगढ़, अग्रज नाट्य दल बिलासपुर आदि द्वारा नृत्य एवं नाट्य प्रस्तुति रही| मुक्तिबोध की कालजयी रचना ‘अँधेरे में’ एवं फणीश्वर नाथ  रेणु रचित पंचलाईट का ऐतिहासिक मंचन भी किया गया |  कविता गोष्ठी सत्र की अध्यक्षता कवि रवि श्रीवास्तव ने की, कवियों में जसवीर ज़ाज, कुमार विजय गुप्त, अजय अनुरागी, गोतिमी राय, विनीता, शशांक, उमाशंकर झा, अरबाज, अरविन्द श्रीवास्तव आदि ने अपनी कविताओं से श्रोताओं को मनमुग्ध कर दिया| सम्मलेन समापन पूर्व साहित्यकारों ने आयोजक बिलासपुर प्रलेस और संयोजक नथमल शर्मा सहित उनके सहयोगियों का आभार व्यक्त किया|

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               बिलासपुर, छत्तीसगढ़ से लौटकर
                   = अरविन्द श्रीवास्तव/ मधेपुरा (बिहार)
     
     

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