मुक्तिबोध
के बाद की हिन्दी कविता में जो ओज, जो ऊर्जा, जो
संभावना दिखाई देती है, वह आठवें दशक के बाद की हिंदी कविता में
मुझे दिखाई नहीं देती। परंतु आठवें दशक के बाद जिन कवियों ने हिंदी कविता की चमक को
बचाए रखा है उन कवियों में कवि विमल कुमार भी हैं. यह वक्तव्य वरिष्ठ आलोचक डॉ. खगेन्द्र
ठाकुर 'बिहार प्रगतिशील लेखक संघ' द्वारा आयोजित दिल्ली से पधारे कवि
विमल कुमार की प्रतिरोधी कविताओं के पाठ के
समय दिया। यह काव्य-पाठ कवि रैदास जी के जन्म-दिवस
को समर्पित था। पटना के जनशक्ति भवन में इस एकल काव्य-पाठ की अध्यक्षता डॉ. खगेन्द्र ठाकुर ने की तथा संचालन कवि शहंशाह आलम
ने किया।
इस अवसर पर कवि विमल कुमार ने अपनी बीसियों कविता
का पाठ किया। उन्होंने सत्ता की खामियों और
सरकार की नाकामियों पर जम कर प्रहार किया। उन्होंने अपनी कविता में कहा - ऐसा वक्त
आ गया है कि अब तुम हत्यारे को हत्यारा नहीं कह सकते… होनी ही चाहिए
बहस/ लोकतंत्र में रवि बाबू / होनी ही चाहिए / नहीं किया जा सकता इससे इंकार। उन्होंने
एक जलाते हुए शहर की यात्रा, बूढ़ी स्त्री के लिए अपील,
पानी का दुखड़ा, मुक्ति का इंतजार, सबसे ताकतवर आदमी शीर्षक द्वारा बाज़ारवाद और एक ध्रुवीय विश्व को आड़े हाथ लिया।
काव्य-पाठ में 'डिजिटल इंडिया' से जुडी उनकी कविता -
न मैं
गांधी के मुल्क में रहता हूँ / न मैं बुद्ध के देश में रहता हूँ / मेरे घर का पता बदल
गया है यारों/ मैं अब डिजिटल इंडिया में रहता हूँ ..। इस कविता को श्रोताओं ने खूब
सराहा
इस अवसर पर वरिष्ठ कवि आलोक धन्वा, वरिष्ठ कथाकार
अवधेश प्रीत, प्रेम कुमार मणि, संतोष दीक्षित,
कवि अरविन्द श्रीवास्तव, संजय कुमार कुंदन,
राकेश प्रियदर्शी, गणेश जी बागी रंगकर्मी अनीश
अंकुर एवं बिहार प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव राजेन्द्र राजन आदि उपस्थित थे। धन्यवाद-ज्ञापन
सुमंत ने किया।
काव्य- पाठ का समापन पटना के वरिष्ठ फोटोग्राफर कृष्ण मुरारी किशन
के निधन पर शोक - संवेदना व्यक्त करने के बाद किया गया।
3 टिप्पणियां:
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सार्थक प्रस्तुतिकरण!
गोस्वामी तुलसीदास
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